फरयादें

परिंदे की फरियाद

आता है याद मुझ को गुज़र हुवा ज़माना
वो बाग़ की बहारें वो सब का चहकना

आज़दियाँ कहाँ वो अब अपने घोंसलों की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना

लगती है चोट दिल पर आता है याद जिस दम
शबनम के आंसुओं पर कलियों का मुस्कुराना

वो प्यारी प्यारी सूरत वो कामनी सी मूरत
आबाद जिस के दाम से था मेरा आशियाना

आती नही सदाएँ उस की मेरे कफ़स में
होती मेरी रिहाई ए काश मेरे बस में

क्या बदनसीब हुँ मैं घर को तरस रहा हुँ
साथी तो है वतन में मैं कैद में पड़ा हुँ

आई बहार कलियाँ फूलों को हँसा रही है
मैं इस अँधेरे घर में क़िस्मत को रो रहा हुँ

क़ुरान की फ़रियाद

ताकों में सजाया जाता हुँ आँखों से लगाया जाता हुँ
तावीज़ बनाया जाता हुँ धो धो के पिलाया जाता हुँ

जुज़दान हरीर व रेशम के और फूल सितारे चाँदी के
फिर इत्र की बारिश होती है खुशबू में बसाया जाता हुँ

जिस तरह तोता मैना को कुछ बोल सिखाये जाते है
इस तरह पढ़ाया जाता हुँ इस तरह सिखाया जाता हुँ

जब कॉल व कसम लेने के लिए तेहरीर की नोबत आती है
फिर मेरी ज़रूरत पड़ती है हाथों में उठाया जाता हुँ

दिल सोज़ से खाली रेहते है आँखें है कि नम होती ही नही
कहने को मैं एक एक जलसा में पढ़ पढ़ के सुनाया जाता हुँ

नेकी पे बदी का ग़लबा है सच्चाई से बढ़ कर धोका है
एक बार हँसाया जाता हुँ सो बार रुलाया जाता हुँ

ये मुझ से अकीदत के दावे कानून पे राज़ी ग़ैरों के
यूँ भी मूझे रुस्वा करते हैं ऐसे भी सताया जाता हुँ

किसी बज़्म में मुझ को बार नही किसी उर्स में मेरी धूम नही
फिर भी में अकेला रेहता हुँ मुझ सा भी कोई मज़लूम नही 

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