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Showing posts from May, 2020

क्या आपकी दुकान में अल्लाह मिलेंगे?

*8 साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर कहा,* --क्या आपकी दुकान में अल्लाह मिलेंगे? दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया। बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा! -- ए लड़के.. 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो? -- मुझे अल्लाह चाहिए। आपकी दुकान में हैं ? दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया। लेकिन, उस मासूम बच्चे ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा, -- तुम अल्लाह को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे अल्लाह लेकर ? पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह सवाल सुनकर बच्चे के चेहरे पर उम्मीद की रोशनी लहराईं৷ लगता है इसी दुकान पर ही अल्लाह मिलेंगे ! बच्चे ने बड़े जोश से जवाब दिया, ----इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी मां अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा ? *डाक्टर ने कहा है कि ...

मुहल्ले में बच्चों को पढ़ाने वाली अम्माजी के घर आटा

*मदद करने का अनोखा अंदाज़* मुहल्ले में बच्चों को  पढ़ाने वाली अम्माजी के घर आटा और सब्जी नहीं है मगर वह सादगी से रहने वाली महिला बाहर आकर मुफ़्त राशन वाली लाइन में लगने से घबरा रही है। फ्री राशन वितरण करने वाले युवाओं को जैसे ही यह बात पता चली उन्होंने जरूरतमंदों में फ्री आटा व सब्जी बांटना रोक दिया। पढ़े लिखे युवा थे आपस में राय व मशवरा करने लगे बातचीत में तय हुआ कि न जाने कितने मध्यवर्ग के लोग अपनी आंखों में ज़रूरत का प्याला लिए फ़्री राशन की लाइन को देखते हैं पर अपने आत्मसम्मान के कारण करीब नहीं आते। राय व मशवरा के बाद उन्होंने फ़्री राशन वितरण का बोर्ड बदल दिया और दूसरा बोर्ड लगा दिया- जिस में लिखा था कि *स्पेशल ऑफ़र:-* हर प्रकार की सब्जी 15 रूपए किलो, मसाला फ़्री, आटा- चावल-दाल 15 रूपए किलो। एलान देख कर भिखारियों की भीड़ छंट गई और मध्यवर्गीय परिवार के मजबूर लोग हाथ में दस बीस पचास रूपए पकड़े ख़रीदारी की लाईन में लग गए, अब उन्हें इत्मीनान था आत्मसम्मान को ठेस लगने वाली बात नहीं थी। इसी लाइन में बच्चों को पढाने वाली अम्माजी भी अपने हाथ में मामूली रकम लेकर पर्दे के साथ खड़ी थीं...