हर आँगन में ख़्वाब हैं लेकिन चंद घरों में ताबीरें हैं



*मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं*

*जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं*

*आज और कल की बात नहीं है सदियों की तारीख़ यही है*

*हर आँगन में ख़्वाब हैं लेकिन चंद घरों में ताबीरें हैं*

*जब भी कोई तख़्त सजा है मेरा तेरा ख़ून बहा है*

*दरबारों की शान-ओ-शौकत मैदानों की शमशीरें हैं*

*हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी*

*गूँगी बहरी सारी भेड़ें चरवाहों की जागीरें हैं*

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