मैं रास्ते में ही था जब मग़रिब की अज़ान हुवी ।

मैं रास्ते में ही था जब मग़रिब
की अज़ान हुवी ।

आज जॉब से आते वक़्त
काफी देर हो चुकी थी ।
मैं जैसे ही घर पहुँचा मग़रिब
का वक़्त तक़रीबन ख़त्म
ही हो चूका था । मैंने जल्दी
जल्दी वजू
बनाया और वैसे ही गीले
हाथ पाँव ले कर
नमाज़ पर नीयत बाँध
कर खड़ा हो गया ।

मेरे चेहरे से पानी टपक रहा था ।
मैं बार बार उसे
आस्तीन से पोंछता और
नमाज़ चालु रखता ।

नमाज़ के दौरान ही मुझे
ध्यान आया की मैं
अम्मी की दवाइयाँ लाना
भूल गया हूँ । आज
ऑफिस में ढ़ेर सारा काम
था, खाना खाने
का भी मौका नही मिला ।

मैं बहुत थक चुका था, सजदे
में जाते ही मैंने नमाज़ में
पूरा ध्यान लाने की कोशिश
की । अचानक मैं एक ऐसे
मैदान में था, जहाँ बहुत सारे
लोग जमा थे । सब के हाथ में
एक किताब थी ।

मुझे कुछ समझ नही आ
रहा था की क्या हो रहा हे ।
तभी किसी ने
आकर एक किताब मेरे हाथ
में भी दे दी । जिस पर
मेरा नाम लिखा हुवा था ।
मैंने खोल कर देखा तो उसमें
मेरे अच्छे और बुरे आमाल
लिखे हुवे थे । मेरा दिल बैठ
गया । मेने सोचा या अल्लाह क्या
मैं मर गया हूँ ?

मैंने सब की तरफ नज़र
दौड़ाई सब के सब एक लाइन
में अपनी किताब जमा कर
रहे थे । मैं समझ
गया था कि मैं मर चुका हूँ
और अब मेरा भी इन
सब की तरह हिसाब किताब
होना है । मैंने भी अपनी किताब जमा कर दी और इंतज़ार
करने लगा ।

जब सब लोगों की
किताब
जमा हो गयी तो वक़्त आया
फैसले का । मुझे अपने
कानों पर यकीन नही हुवा,
जब सबसे पहले
मेरा नाम पुकारा गया ।

मेरा दिल जोर ज़ोर से धड़कने
लगा ।मैंने
सोचा ना जाने आज
मेरा क्या होगा ? क्या मेरा
अंजाम होगा ? तभी आवाज़
आई ''ज़हन्नम'' ।

मुझे भरोसा नही था की
मेरे हिस्से में जहन्नम
आएगा । मैं रोने लगा मेरे
गालों से आँसू बहने लगे ।

तभी दो खतरनाक दिखने
वाले साए आये और मुझे
घसीट कर ले जाने लगे । मैं
चिल्लाता रहा बचाओ, मुझे
कोई बचाओ, लेकिन
सब मुझे सहमी हुवी नज़र
से देख रहे थे कोई बचाने
के लिए आगे नही आया ।

मैंने चिल्ला कर कहा मैंने
कभी कुछ गलत
नही किया, कभी झूठ
नही बोला, किसी की चुगली
नही की, सूद नही खाया, फिर
मुझे क्यों जहन्नम
में फेंक रहे हो ?

कोई कुछ नही बोला सिर्फ
मुझे खींचते रहे । अब मैं
ज़हन्नम की आग महसूस
कर सकता था । उसका मुहाना
थोड़ी दूर ही था ।
और उसमें से ऐसी
आवाज़ आ रही थी जैसे
कोई जानवर रस्सी तोड़
कर मुझ पर हमला करने
की कोशिश कर रहा हो ।

मैं बहुत डर गया और
जोर जोर से रोने लग गया ।
तभी मुझे याद आयी
"नमाज़" की ।

मैं चिल्लाने लगा मेरी नमाज़
मेरी नमाज कहाँ हे ???
जहन्नम का मुहाना सामने
ही था । दुनिया में मैं
जरा सी गर्मी बर्दाश्त
नही करता था,
या अल्लाह इस गर्मी को
कैसे बर्दाश्त करूँगा ?

अब मैं ज़हन्नम के दरवाज़े
पर था और जोर जोर से
रो रहा था ।
अपनी नमाज़ को आवाज़ दे
रहा था, लेकिन कोई सुनने
वाला नही था । मैं
चिल्लाया लेकिन कोई फर्क
नही पड़ा ।

एक साए ने मुझे धक्का दे दिया
और मैं जहन्नम
की तपती आग में गिरने लगा ।
मुझे लगा ये
ही मेरा हश्र है ।

इतने में एक हाथ ने मुझे
पकड़ लिया । मैंने सर उठा
कर देखा तो मुहाने पर एक
बुज़ुर्ग खड़े थे । सफ़ेद
दाढ़ी और नूरानी चेहरा
लेकर मुस्कुरा रहे थे । नीचे
दोज़ख की आग मुझे
झुलसाने के लिए मचल रही
थी । लेकिन उस बुज़ुर्ग का
हाथ लगते ही उसकी तपिश
ठंडक में बदल गयी ।

मैंने उनसे पुछा आप
कौन हैं ?
उन्होंने मुझे बाहर खींच
कर कहा तुम्हारी नमाज़ ।
मुझे गुस्सा आया और
मैंने कहा, आप इतनी देर
से क्यों आये ? मुझे दोज़ख
में धक्का दे दिया गया
था, आप
अगर थोड़ा और देर
से आते तो मैं जहन्नमी
हो चूका होता ।

बुज़ुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा
तुम भी मुझे आखरी वक़्त में
पढ़ा करते थे ।

तभी मेरी नींद खुली ।
कोई मुझे जोर जोर से
हिला रहा था । मैंने देखा
अम्मी मेरे पास
खड़ी हुवी हैं और बोल रहीं
हैं, क्या हुवा नमाज़
नमाज़ क्यों चिल्ला रहा है ???

मेरी ख़ुशी का ठीकाना ना
रहा । मैं जिंदा था । मैंने अम्मी
को गले लगाया और
कहा आज के बाद मैं कभी
नमाज़ में
देरी नही करूँगा .....

दोस्तों आप सब नमाज़ पढ़ो, इससे
पहले की आप
की नमाज़ पढ़ाई जाए ।

नमाज़ पढ़ो
अपने
वक़्त पर ।

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जरुर करें ।

सिर्फ 1 मिनट ही लगेगा, हो सकता है कोई तौबा करके नमाज़ का पाबन्द बन जाए और आपके लिए सदकये जारिया बन जाए ।

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