नाज़ीया ने कहा अफ़ज़ल कोई जॉब मिली आपको?
पत्नी- अस्सलामु अलैयकुम अफ़ज़ल कोई जॉब मिली क्या आप को ?
पति- जॉब नहि मिली नाज़ीया मिल जाती तो रमज़ान में बच्चों के कपड़ों का इंतज़ाम हो जाता, इस बार भी तुम अपनी माँ के यहाँ से कपड़े ले आना ।
पत्नी- शादी के बाद से ये पाँचवी ईद है और हर मरतबा रमज़ान ईद में कपड़े मेरे वालीदेन के घर से ही आता हैं ।
पति- तो क्या हुआ इस बार भी ले आना
पत्नी- आपको मालूम है ना पापा रिटायरड हो गए हैं और उस पर अम्मी की बीमारी भी, बहोत मुश्किल से घर चला रहे हैं ।
पती - तुम्हारा भाई तो बहुत रहिस आदमी है उनसे कहो ना
पत्नी- मेरा भाई यक़ीनन पैसों से बहुत रहिस है लेकिन दिल से बहुत ग़रीब है, और मेरा भाई जोरू के ग़ुलाम है उसमें ज़रा सी भी ग़ैरत होती तो आज मेरे अम्मी बाबा को इस हाल में छोड़ के बीवी के साथ अलग नहि रहते हाथ फैलाने से अच्छा है में भूखी मर जाऊँ
पति- हक़ बात कही जो इंसान अपने माँ बाप का नहि हो सका वो किसी और का क्या हो जाएगा ।
पत्नी- ये कोई ज़रूरी नहि है की ईद मनाने के लिए नए कपड़े ही लिए जाए.. पुराने कपड़े में भी ईद हो सकती है ।
पति- मेरे मासूम बच्चों की अलहमदुलिल्लाह रोज़ा नमाज़ और तिलावत हो रही है वो कितने ख़ुस हो रहे है की ईद पे हमें नए जोड़े मिलेंगे
मेरा दिल नहि मानता उनको पुराने कपड़े पहनाने को, जाने दो में मेरा मोबाइल बेच देता हुँ और बच्चों के लिए नये कपड़ा ख़रीद लेता हूँ जब जॉब लग जाएगी तो नया मोबाइल ले लेंगे ।
पत्नी- एक बात कहूँ आप अपने छोटे भाई से कुछ पैसे माँग लो
पति- वो नहि देगा उलटा अपनी बीवी के सामने चार बातें सुना कर ज़लील और रुसवा कर देगा बे वजह इज़्ज़त चली जाएगी दोनो मियाँ बीवी रोजे से थे, दोनों एक दूसरे की तरफ़ बेबसी से देखा और आँखों में आँसू जारी हो गए ।
[ ये हम 100 मे से 40 घरों की यही कहानी है, ग़ैरत के मारे किसी के आगे हाथ नहि फैलाते.. रमज़ान के महीने में सिर्फ़ फ़क़ीरों को मत दो बल्कि उनको दो जो शर्म और खुद्दारी की वजह से आपसे माँग नहि सकते..
जैसे हमारे पड़ोसी, रिश्तेदार या फिर हमारे ख़ुद के भाई बहन जो ग़रीब है या फ़ाइनेंसली वीक है आपके अपनो का हक़ है
आपके ऊपर...
ये रमज़ान में ऐसा कर जाओ की अल्लाह रसूल को राज़ी कर लो उनकी मखलूक को खुश करो!
अपने लिए तो सभी जीते है जियो कुछ इस तरह की जब लोगों की ज़ुबान पे आप का नाम आए तो उन की आँख भीग जाए..
दिल इजाज़त दे तो ज़रूर share करें, जजाकअल्लाह ख़ैर..
पति- जॉब नहि मिली नाज़ीया मिल जाती तो रमज़ान में बच्चों के कपड़ों का इंतज़ाम हो जाता, इस बार भी तुम अपनी माँ के यहाँ से कपड़े ले आना ।
पत्नी- शादी के बाद से ये पाँचवी ईद है और हर मरतबा रमज़ान ईद में कपड़े मेरे वालीदेन के घर से ही आता हैं ।
पति- तो क्या हुआ इस बार भी ले आना
पत्नी- आपको मालूम है ना पापा रिटायरड हो गए हैं और उस पर अम्मी की बीमारी भी, बहोत मुश्किल से घर चला रहे हैं ।
पती - तुम्हारा भाई तो बहुत रहिस आदमी है उनसे कहो ना
पत्नी- मेरा भाई यक़ीनन पैसों से बहुत रहिस है लेकिन दिल से बहुत ग़रीब है, और मेरा भाई जोरू के ग़ुलाम है उसमें ज़रा सी भी ग़ैरत होती तो आज मेरे अम्मी बाबा को इस हाल में छोड़ के बीवी के साथ अलग नहि रहते हाथ फैलाने से अच्छा है में भूखी मर जाऊँ
पति- हक़ बात कही जो इंसान अपने माँ बाप का नहि हो सका वो किसी और का क्या हो जाएगा ।
पत्नी- ये कोई ज़रूरी नहि है की ईद मनाने के लिए नए कपड़े ही लिए जाए.. पुराने कपड़े में भी ईद हो सकती है ।
पति- मेरे मासूम बच्चों की अलहमदुलिल्लाह रोज़ा नमाज़ और तिलावत हो रही है वो कितने ख़ुस हो रहे है की ईद पे हमें नए जोड़े मिलेंगे
मेरा दिल नहि मानता उनको पुराने कपड़े पहनाने को, जाने दो में मेरा मोबाइल बेच देता हुँ और बच्चों के लिए नये कपड़ा ख़रीद लेता हूँ जब जॉब लग जाएगी तो नया मोबाइल ले लेंगे ।
पत्नी- एक बात कहूँ आप अपने छोटे भाई से कुछ पैसे माँग लो
पति- वो नहि देगा उलटा अपनी बीवी के सामने चार बातें सुना कर ज़लील और रुसवा कर देगा बे वजह इज़्ज़त चली जाएगी दोनो मियाँ बीवी रोजे से थे, दोनों एक दूसरे की तरफ़ बेबसी से देखा और आँखों में आँसू जारी हो गए ।
[ ये हम 100 मे से 40 घरों की यही कहानी है, ग़ैरत के मारे किसी के आगे हाथ नहि फैलाते.. रमज़ान के महीने में सिर्फ़ फ़क़ीरों को मत दो बल्कि उनको दो जो शर्म और खुद्दारी की वजह से आपसे माँग नहि सकते..
जैसे हमारे पड़ोसी, रिश्तेदार या फिर हमारे ख़ुद के भाई बहन जो ग़रीब है या फ़ाइनेंसली वीक है आपके अपनो का हक़ है
आपके ऊपर...
ये रमज़ान में ऐसा कर जाओ की अल्लाह रसूल को राज़ी कर लो उनकी मखलूक को खुश करो!
अपने लिए तो सभी जीते है जियो कुछ इस तरह की जब लोगों की ज़ुबान पे आप का नाम आए तो उन की आँख भीग जाए..
दिल इजाज़त दे तो ज़रूर share करें, जजाकअल्लाह ख़ैर..
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