यह काम अल्लाह का हे, अल्लाह जाने

Edited Story

पाकिस्तान बनने से पहले सिंध के एक पुराने शहर में एक हकीम साहब हुआ करते थे, जिनका मकान  एक पुरानी सी इमारत में था। हकीम साहब रोज  सुबह दुकान जाने से पहले पत्नी को कहते कि जो कुछ आज के दिन के लिए तुम्हें चाहिये वो एक चिठ्ठी में लिख कर दे दो। पत्नी लिखकर दे देती । हकीम साहब दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होती। उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर अल्लाह से दुआ करते कि या अल्लाह! मैं सिर्फ और सिर्फ तेरे ही हुक्म के मुताबिक और में तेरी इबादतों को छोड़कर कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। ज्योंही तू मेरी आज की ज़रूरतों का और पैसो का इनतिजाम कर देगा। उसी वक़्त में यहां  से उठ कर चला जाऊँगा और फिर यही होता। कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे हकीम साहब रोगियों का ईलाज कर के वापस अपने गाँव चले जाते।
एक दिन हकीम साहब ने दुकान खोली। रकम के हिसाब के लिए चिठ्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने तारे चमकते हुए नजर आ गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने आपे पर काबू पा लिया। आटे दाल चावल आदि के बाद बेगम ने लिखा था, बेटी के दहेज का सामान। कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा हुवा देखा *'' यह काम अल्लाह का हे, अल्लाह जाने।''*
उस रोज एक या दो ही मरीज आए थे। उन्हें हकीम साहब दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दुकान के सामने आकर रुकी। हकीम साहब ने कार या कर के मालिक को कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कार वाले उनके पास आते रहते थे।
दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह कार के साहब कार से बाहर निकले और सलाम करके बेंच पर बैठ गए। हकीम साहब ने कहा कि अगर आप को अपने लिए दवा लेनी है तो उधर स्टूल पर आजाइये ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ या किसी मरीज़(रोगी) की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी का हाल बता कर के दवाई ले जाइये। वह साहब कहने लगे लगता है आप ने मुझे पेहचाना नहीं। लेकिन आप मुझे पेहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल के बाद आप की दुकान पे आया हूँ
आप को पिछले मुलाकात का अहवाल सुनाता हूँ फिर आप को सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहां आया था तो में खुद नहीं आया था अल्लाह ने मुझे आप के पास भेजा था क्योंकि अल्लाह को मुझ पर रहम आ गया था और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि लाहौर से मीरपुर अपनी कार में अपने ड्राइवर के साथ घर जा रहा था। इसी दुकान के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राइवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर कराने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा हूँ। आप मेरे पास आए और दुकान की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें। मैं ने शुक्रिया अदा किया और कुर्सी पर आकर बैठ गया।
ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी सी बच्ची भी यहाँ अपनी मेज के पास खड़ी थी और बार बार केह रही थी '' चलें नां, मुझे भूख लगी है। आप इसे केह रहे थे बेटी थोड़ा सब्र करो चलते हैं।
मैं यह सोच कर कि इतनी देर आप के पास बैठा हूँ। मुझे कोई दवाई खरीदना चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार मेहसूस न करें। मैंने कहा हकीम साहब में 5,6 साल से इंग्लैंड में रेहता हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चों के सुख से वंचित हूँ। यहां भी इलाज किया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत में निराशा के सिवा और कुछ नहीं देखा। आपने कहा मेरे भाई! तौबा करो और अपने रब से निराश न हो । याद रखें! उसके खजाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। औलाद, माल व असबाब और ग़मी खुशी, जीवन और मौत सब कुछ उसी के हाथ में है। किसी हकीम या डॉक्टर के हाथ में नहीं होती और न ही किसी दवा में  होती है। अगर होनी है तो अल्लाह के हुक्म से होनी है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है तुम बातें करते जा रहे थे और साथ पुड़ीया बना रहे थे। सभी दवा आपने 2 भागों में अलग अलग कर लिफाफा में डाली। फिर मुझसे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? मैंने बताया कि मेरा नाम मोहम्मद अली है। आप ने एक लिफाफा पर मुहम्मद अली और दूसरे पर बेगम मुहम्मद अली लिखा। फिर दोनों लिफाफे को एक बड़े से लिफाफे में रख कर दवा को इस्तेमाल करने का तरीका बताया। मैं ने बेदिली से दवाई ले ली क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पूछा कितने पैसे? आपने कहा बस ठीक है। मैं ने ज़ोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है।
मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी रकम हकीम साहब ने अल्लाह से मांगी थी वह अल्लाह ने दे दी है। ज़्यादा पैसे वो नहीं ले सकते। मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में शर्मिंदा हुआ कि मेरी कितने घटिया सोच थी और यह सादगी भरे हकीम साहब कितने महान शख़्श हैं। मैं ने जब घर जा कर अपनी बीवी को दवाई (औषधि) दिखाएँ और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई फरिश्ता है और उसकी दी हुई दवा हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। हकीम साहब आज मेरे घर में तीन तीन फूल खेल रहे हैं।
हम जीवन साथी हर वक़्त आप के लिए दुवा करते रहते हैं। जब भी पाकिस्तान छुट्टी के लिए आता हूँ आप के दवाखाने की तरफ कार को मोड़ता हुँ लेकिन दुकान को बंद पाता हूँ। कल दोपहर भी आया था दुकानबंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ था। उसने कहा कि अगर आप को हकीम साहब से मिलना है तो सुबह 9 बजे ज़रूर पहुंच जाएं वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं। इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ।

हकीम साहब हमारा सारा परिवार इंग्लैंड सेटल हो चुका है। सिर्फ हमारी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ पाकिस्तान में रेहती है। हमारी भांजी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी थी। इस भांजी की शादी का सारा खर्च मैं ने अपने ज़िम्मा लिया था। 10 दिन पहले इसी कार में उसे मैं लाहौर अपने रिश्तेदारों के पास भेजा कि शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले। उसे लाहौर जाते ही बुखार हो गया लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। बुखार की गोलियाँ डिस्प्रिन आदि खाती और बाजारों में फिरती रेहती। बाजार में फिरते फिरते अचानक बेहोश होकर गिर गई। वहां से उसे अस्पताल ले गए। वहां जाकर पता चला कि इसे 106 डिग्री बुखार है और यह गर्दन तोड़ बुखार है। वह कोमा की हालत ही में इस दुनिया से चली गयी ।
इसके मरते ही न जाने क्यों मुझे और मेरी बोवी को आपकी बेटी का ख्याल आया। हम ने और हमारे सभी परिवार ने फैसला किया है कि हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-सामान आपके यहां पहुंचा देंगे। शादी जल्दी हे तो इनतेजाम खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी पहुंचा देंगे। आप को ना नहीं करनी। अपना घर दिखा दें ताकि माल ट्रक में भर कर वहां पहुंचाया जा सके।

हकीम साहब हैरान-परेशान हुए  बोले '' मुहम्मद अली साहब आप जो कुछ केह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है। मैं तो आज सुबह जब बीवी के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी को यहाँ आकर खोलकर देखा तो मिर्च मसाले के बाद जब मैंने ये शब्द पढ़े '' बेटी के दहेज का सामान '' तो तुम्हें पता है मैं क्या लिखा देखा ???। आप खुद यह चिठ्ठी जरा देखें। मुहम्मद अली साहब यह देखकर हैरान रेह गए कि '' बेटी के दहेज '' के सामने लिखा हुआ था *'' यह काम अल्लाह का हे, अल्लाह जाने।''*
मोहम्मद अली साहब, यकीन करो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि मेरी बीवी ने चिठ्ठी पर बात लिखी हो और अल्लाह ने उसका उसी दिन इनतेजाम न कर दिया हो।
वाह मौला वाह। तू महान है तू करीम है। आपकी भांजी की मौत का सदमा है लेकिन अल्लाह की कुदरत से हैरान हूँ कि वो कैसे अपने काम दिखाता है।
हकीम साहब ने कहा जब से होश संभाला है एक ही सबक (पाठ) पढ़ा है कि सुबह विर्द है '' या रज़ाक , या रज़ाक, तूही रज़ाक है '' और शाम को '' शुक्र, शुक्र मेरे मौला तेरा शुक्र है। ''

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