इसीलिए केहता हुँ निकाह आम करो और ज़िना मुश्किल करो.
#निकाह_या_ज़िना
माँ, मैं जल्द शादी करना चाहता हुं, गुनाह से बचना चाहता हुं, अपना आधा इमान मुकम्मल करना चाहता हुं, तुम क्यो मेरी जल्दी शादी नही करती, मैं एक आम इंसान हुं, 26 साल मेरी उम्र है, और मेरा घराना मजहबी है, जहा नमाज रोजा दीन को बहुत अहमियत दी जाती है, लेकिन ये अहमियत सिर्फ नमाज रोजा तक ही है, जो हुक्म इसके अलावा है वो हमारे खानदान मे पुरे नही होते. मैंने स्कूल कालेज यूनिवर्सटी से लेकर हर इदारे मे अपने आपको गुनाहो से महफूज रखने की अल्लाह की ताकत से कोशिश की, मेरे दोस्त गर्लफ्रेंड बनाते थे बुरे काम करते थे, डेट मारते थे, मगर मेने हमेशा सोचा मैं ये सब काम हलाल तरीके से करूंगा, जब मेरी उम्र बीस साल हुई तो मुझे शादी की जरूरत हुई, मैंने अपने घरवालो से गुजारिश की, सबने ताज्जुब किया जैसे मैंने कोई अजीब बात कर दी हो, मुझे कहा गया के पहले तुम्हारे खर्चे पुरे नही होते, फिर एक और बन्दा घर ले आए तुम्हारी बीवी के खर्चे जरूरत कौन पुरी करेगा, मैंने डरते डरते जवाब दिया अगर हमारे घर मे एक भाई या बहन और होते तो उनका रिज्क कहा से लाते, घर वालो को एक और ऑफर पेश की के मेरा यूनिवर्सटी स्कॉलर शीप भी लगा हुआ और इसके साथ साथ वहा होम ट्यूशन पढाकर अपनी बीवी की जरूरत पूरी करने मे आप घर वालो की मदद करूंगा.
तमाम तर दलाइल देने के बावजूद जवाब यही मिला के जाओ, अपनो से बडी बाते नही करते, फिर भी मैंने सब्र किया, मगर मेरी उम्र जब चौबीस साल हुई तो मुझे शदीद शादी की तलब होने लगी, मुझे अपने आप को बुराई से बचाना शदीद मुश्किल हो गया, मैंने अपने घरवालो को कहना शुरू किया के अब वक्त आ गया है मेरी शादी कर दे, मेने पढाई मुकम्मल कर ली है जाब भी करता हु. एक मिडिया चेनल मे मगर मेरे घरवालो ने शदीद एतराज उठाना शुरू किए, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है, मैंने इनको कुरान व हदीस से सबूत दिए, मगर उन्होंने इसको ये कहकर परे कर दिया बाकी इसलाम की बाते भी मानो, और एक दिन मेरी माँ ने बताया, मेने कुरान का तर्जुमा पुरा पढ लिया, मेने कहा ऐसा पढने का क्या फायदा जिस पर अमल नही करना, कुरान में लिखा है बालिग होते शादी करो हदीस में आता है अगर बालिग होने के बाद माँ बाप शादी ना करे तो सारा गुनाह माँ बाप को होगा औलाद को नही. अंदाजा किजिये15 साल की उम्र मे जवान होने के बाद तीस साल तक पहुंचने के इस जमाने मे नौजवान पर क्या क्या ना कयामते गुजरती होगी.
उसके पास बस दो ही ऑप्शन होते है, या तो वो गुनाह से अपने आपको बचाकर रोज अपनी ही ख्वाहिशात का कत्ल करके हर लम्हा जीता और हर लम्हा मरता है और या वो गुनाहो की अंधी वादियो मे भटककर ऐसा गुम हो जाता है कि जब वापस आता है तो उसकी गठरी मे सिवाय हसरत व अफसोस के और कुछ नही होता. इंटरनेट टीवी पर फहाशी का बाजार आम है, दोस्तो के साथ देखता हुं वो लडकियो में इंजॉय कर रहे है, बाजारो मे लडकियो पर नजर पढ जाए, बारिक कपडे जिस्म टाइट कैसे बचाऊ अपने आपमें चिडचिडा होते जा रहा हुं, घरवाले कहते है बदतमीज हो गया है, मगर इनको समझ नही आती ये बदतमीजी क्यो होती. मेरे वालिद 35 हजार कमाते है, तीन बहन भाइयो समेत पुरा घर चलाते है तो क्या 35 हजार मे अपनी बीवी के साथ गुजारा नही कर सकता. मगर मेरी कोई सुनता नही, कहते है अभी उम्र ही क्या है 26 साल सिर्फ और शादी का नाम 32 साल की उम्र से पहले ना लेना. मैं कैसे समझाऊ, नौजवानो को तरक्की करने के लिए सुकून का माहौल चाहिए और अल्लाह ने कुरान मे कहा है मिया बीवी एक दुसरे से सुकून हासिल करो.
कहा गए मेरे अल्लाह के अहकामात और मेरे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीमात, क्या ये सिर्फ नारे मारने के लिए है कि हम आशिक रसूल है मगर अमल की दफा जीरो. बहुत मुश्किल से जाकर एक साल लड कर माँ बाप को मनाया रिश्ता करो, कूछ हामी भरी उन्होंने भी जलील करके मगर इस दौरान मेरे दादा का इंतकाल हो गया और इनके इंतकाल के 25 दिन बाद मैंने कहा, मेरा रिश्ता करो तो कहते है तुमको एहसास है अभी फौतगी हुई, मेने कहा इसलाम कहता है तीन दिन से ज्यादा का सोग नही होता, कहने लगे जब हम मरेगे इसका मतलब तुम भंगडे डालोगे, समझ आया मुझे ये सब बाते सिर्फ शादी ना करने का बहाना है, कही हमारा बेटा बहु के प्यार मे पागल होकर हाथ से ना निकल जाए और कोई वजह नही, सोचता हु के अब अगर मे बुराई की तरफ माईल हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा, मेरे माँ बाप या फिर ये मुआशरा मिडिया सियासतदान जिन्होने जिना आसान कर दिया है मगर शादिया मुश्किल कर दी है कैसे अल्लाह की बरकत नाजील होगी इस मुल्क पर. काश माँ बाप समझ जाए ये दज्जाली फितने का दौर है इमान बचाना बहुत मुश्किल, इसीलिए केहता हुँ निकाह आम करो और ज़िना मुश्किल करो.
माँ, मैं जल्द शादी करना चाहता हुं, गुनाह से बचना चाहता हुं, अपना आधा इमान मुकम्मल करना चाहता हुं, तुम क्यो मेरी जल्दी शादी नही करती, मैं एक आम इंसान हुं, 26 साल मेरी उम्र है, और मेरा घराना मजहबी है, जहा नमाज रोजा दीन को बहुत अहमियत दी जाती है, लेकिन ये अहमियत सिर्फ नमाज रोजा तक ही है, जो हुक्म इसके अलावा है वो हमारे खानदान मे पुरे नही होते. मैंने स्कूल कालेज यूनिवर्सटी से लेकर हर इदारे मे अपने आपको गुनाहो से महफूज रखने की अल्लाह की ताकत से कोशिश की, मेरे दोस्त गर्लफ्रेंड बनाते थे बुरे काम करते थे, डेट मारते थे, मगर मेने हमेशा सोचा मैं ये सब काम हलाल तरीके से करूंगा, जब मेरी उम्र बीस साल हुई तो मुझे शादी की जरूरत हुई, मैंने अपने घरवालो से गुजारिश की, सबने ताज्जुब किया जैसे मैंने कोई अजीब बात कर दी हो, मुझे कहा गया के पहले तुम्हारे खर्चे पुरे नही होते, फिर एक और बन्दा घर ले आए तुम्हारी बीवी के खर्चे जरूरत कौन पुरी करेगा, मैंने डरते डरते जवाब दिया अगर हमारे घर मे एक भाई या बहन और होते तो उनका रिज्क कहा से लाते, घर वालो को एक और ऑफर पेश की के मेरा यूनिवर्सटी स्कॉलर शीप भी लगा हुआ और इसके साथ साथ वहा होम ट्यूशन पढाकर अपनी बीवी की जरूरत पूरी करने मे आप घर वालो की मदद करूंगा.
तमाम तर दलाइल देने के बावजूद जवाब यही मिला के जाओ, अपनो से बडी बाते नही करते, फिर भी मैंने सब्र किया, मगर मेरी उम्र जब चौबीस साल हुई तो मुझे शदीद शादी की तलब होने लगी, मुझे अपने आप को बुराई से बचाना शदीद मुश्किल हो गया, मैंने अपने घरवालो को कहना शुरू किया के अब वक्त आ गया है मेरी शादी कर दे, मेने पढाई मुकम्मल कर ली है जाब भी करता हु. एक मिडिया चेनल मे मगर मेरे घरवालो ने शदीद एतराज उठाना शुरू किए, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है, मैंने इनको कुरान व हदीस से सबूत दिए, मगर उन्होंने इसको ये कहकर परे कर दिया बाकी इसलाम की बाते भी मानो, और एक दिन मेरी माँ ने बताया, मेने कुरान का तर्जुमा पुरा पढ लिया, मेने कहा ऐसा पढने का क्या फायदा जिस पर अमल नही करना, कुरान में लिखा है बालिग होते शादी करो हदीस में आता है अगर बालिग होने के बाद माँ बाप शादी ना करे तो सारा गुनाह माँ बाप को होगा औलाद को नही. अंदाजा किजिये15 साल की उम्र मे जवान होने के बाद तीस साल तक पहुंचने के इस जमाने मे नौजवान पर क्या क्या ना कयामते गुजरती होगी.
उसके पास बस दो ही ऑप्शन होते है, या तो वो गुनाह से अपने आपको बचाकर रोज अपनी ही ख्वाहिशात का कत्ल करके हर लम्हा जीता और हर लम्हा मरता है और या वो गुनाहो की अंधी वादियो मे भटककर ऐसा गुम हो जाता है कि जब वापस आता है तो उसकी गठरी मे सिवाय हसरत व अफसोस के और कुछ नही होता. इंटरनेट टीवी पर फहाशी का बाजार आम है, दोस्तो के साथ देखता हुं वो लडकियो में इंजॉय कर रहे है, बाजारो मे लडकियो पर नजर पढ जाए, बारिक कपडे जिस्म टाइट कैसे बचाऊ अपने आपमें चिडचिडा होते जा रहा हुं, घरवाले कहते है बदतमीज हो गया है, मगर इनको समझ नही आती ये बदतमीजी क्यो होती. मेरे वालिद 35 हजार कमाते है, तीन बहन भाइयो समेत पुरा घर चलाते है तो क्या 35 हजार मे अपनी बीवी के साथ गुजारा नही कर सकता. मगर मेरी कोई सुनता नही, कहते है अभी उम्र ही क्या है 26 साल सिर्फ और शादी का नाम 32 साल की उम्र से पहले ना लेना. मैं कैसे समझाऊ, नौजवानो को तरक्की करने के लिए सुकून का माहौल चाहिए और अल्लाह ने कुरान मे कहा है मिया बीवी एक दुसरे से सुकून हासिल करो.
कहा गए मेरे अल्लाह के अहकामात और मेरे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीमात, क्या ये सिर्फ नारे मारने के लिए है कि हम आशिक रसूल है मगर अमल की दफा जीरो. बहुत मुश्किल से जाकर एक साल लड कर माँ बाप को मनाया रिश्ता करो, कूछ हामी भरी उन्होंने भी जलील करके मगर इस दौरान मेरे दादा का इंतकाल हो गया और इनके इंतकाल के 25 दिन बाद मैंने कहा, मेरा रिश्ता करो तो कहते है तुमको एहसास है अभी फौतगी हुई, मेने कहा इसलाम कहता है तीन दिन से ज्यादा का सोग नही होता, कहने लगे जब हम मरेगे इसका मतलब तुम भंगडे डालोगे, समझ आया मुझे ये सब बाते सिर्फ शादी ना करने का बहाना है, कही हमारा बेटा बहु के प्यार मे पागल होकर हाथ से ना निकल जाए और कोई वजह नही, सोचता हु के अब अगर मे बुराई की तरफ माईल हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा, मेरे माँ बाप या फिर ये मुआशरा मिडिया सियासतदान जिन्होने जिना आसान कर दिया है मगर शादिया मुश्किल कर दी है कैसे अल्लाह की बरकत नाजील होगी इस मुल्क पर. काश माँ बाप समझ जाए ये दज्जाली फितने का दौर है इमान बचाना बहुत मुश्किल, इसीलिए केहता हुँ निकाह आम करो और ज़िना मुश्किल करो.
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