Arabic Duaayen With Tarjuma
"بسم الله الرحمن الرحيم"
اللهم اليک اشكو ضعف قوتى وقلة حيلتى وهوانى على الناس ياارحم الراحمين انت رب المستضعفين وأنت ربي الى من تکلنى الى بعيد يتجهمنى ام الى عدو ملکته امرى ان لم يکن بک على غضب فلا ابالى ولکن عافىتک هى اوسع لى اعوذ بنور وجهک الذى اشرقت له الظلمات وصلح عليه امر الدنيا والاخرة من ان تنزل بى غضبک او يحل على سخطک لک العتبى حتى ترضى ولاحول ولاقوة الا بک
(السيرة النبويه ابن کثر جلددوم)
ऐ अल्लाह ! मैं अपनी ताकत की तवानाई अपनी क़ूवत ए अमल की कमी लोगों की निग़ाहों में अपनी बेबसी का शिक़वा तेरी बारगाह में करता हुँ (करती हुँ)
ऐ अर्हमर राहीमीन ! तु कमज़ोरों का रब है तु मेरा भी रब है ।
तु मुझे किस के हवाले करता है ऐे से बईद के हवाले जो तुर्श रुई से मेरे साथ पेश आता है (आती है) ।
क्या किसी दुश्मन को तु ने मेरी क़िस्मत का मालिक बना दिया है । अगर तु मुझ पर नाराज़ ना हो तो मुझे इन तकलीफ़ों की ज़रा भी परवाह नही ।
फिर भी तेरी तरफ से आफ़ियत और सलामती मेरे लिए ज़्यादा दिलकुशाह है ।
मैं पनाह मांगता हुँ (मांगती हुँ) तेरी ज़ात के नूर के साथ जिस से तारीकियाँ रोशन हो जाती है । और दुनियाँ व आख़िरत के काम संवर जाते है ।
के तु नाज़िल करे अपना ग़ज़ब मुझ पर और तु उतारे मुझ पर अपनी नाराज़गी ।
मैं तेरी रज़ा तलब करता रहूंगा (करती रहूंगी) यहां तक के तु राज़ी हो जाये ।
तेरी ज़ात के बगैर ना मेरे पास कोई ताकत है ना क़ुव्वत ।
((السيرة النبويه ابن کثر جلددوم)
عبدالکريم (ننو) عبدالشکور غورى
اور تمام غورى خاندان کى جانب سے
9898181726,9974338345
998509030,9819473559
اللهم اليک اشكو ضعف قوتى وقلة حيلتى وهوانى على الناس ياارحم الراحمين انت رب المستضعفين وأنت ربي الى من تکلنى الى بعيد يتجهمنى ام الى عدو ملکته امرى ان لم يکن بک على غضب فلا ابالى ولکن عافىتک هى اوسع لى اعوذ بنور وجهک الذى اشرقت له الظلمات وصلح عليه امر الدنيا والاخرة من ان تنزل بى غضبک او يحل على سخطک لک العتبى حتى ترضى ولاحول ولاقوة الا بک
(السيرة النبويه ابن کثر جلددوم)
ऐ अल्लाह ! मैं अपनी ताकत की तवानाई अपनी क़ूवत ए अमल की कमी लोगों की निग़ाहों में अपनी बेबसी का शिक़वा तेरी बारगाह में करता हुँ (करती हुँ)
ऐ अर्हमर राहीमीन ! तु कमज़ोरों का रब है तु मेरा भी रब है ।
तु मुझे किस के हवाले करता है ऐे से बईद के हवाले जो तुर्श रुई से मेरे साथ पेश आता है (आती है) ।
क्या किसी दुश्मन को तु ने मेरी क़िस्मत का मालिक बना दिया है । अगर तु मुझ पर नाराज़ ना हो तो मुझे इन तकलीफ़ों की ज़रा भी परवाह नही ।
फिर भी तेरी तरफ से आफ़ियत और सलामती मेरे लिए ज़्यादा दिलकुशाह है ।
मैं पनाह मांगता हुँ (मांगती हुँ) तेरी ज़ात के नूर के साथ जिस से तारीकियाँ रोशन हो जाती है । और दुनियाँ व आख़िरत के काम संवर जाते है ।
के तु नाज़िल करे अपना ग़ज़ब मुझ पर और तु उतारे मुझ पर अपनी नाराज़गी ।
मैं तेरी रज़ा तलब करता रहूंगा (करती रहूंगी) यहां तक के तु राज़ी हो जाये ।
तेरी ज़ात के बगैर ना मेरे पास कोई ताकत है ना क़ुव्वत ।
((السيرة النبويه ابن کثر جلددوم)
عبدالکريم (ننو) عبدالشکور غورى
اور تمام غورى خاندان کى جانب سے
9898181726,9974338345
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