अपनी ज़कात सही हाथो में दें

बहुत उल्झन मे हूँ कि *ईद* मनाऊँ कैसे ?
सेँवई भी नहीं है कपङा सिलाऊँ कैसे ?

अहले *हैसीयत* चमकेंगे और चहकेंगे
पर मैं अपने बच्चों को *सजाऊँ* कैसे ?

बच्चे ही हैं *खिलौने* की ज़िद किए बैठे हैं
घर मे *पैसे* नहीं हैं उनको समझाऊँ कैसे ?

फितरा  *ज़कात*  से  कुछ  *उम्मीद*  बंधी  है
 *मुस्तहक* हूँ इसका पर लोगों को *बताऊँ* कैसे ?

 *रौनक* होगी हर घर मे बस मेरा घर छोङकर
ऐ दोस्त!तू ही बता वह दिन मै *बिताऊँ* कैसे ?

( *अपनी ज़कात सही हाथो में दें ताकि किसी की ईद अच्छी मन सके* ).

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