इस लॉक_डाउन के दौरान की एक सच्ची कहानी

*(इस लॉक_डाउन के दौरान की एक सच्ची कहानी)* सात अप्रैल की रात एक साहब के निशानदेही पर एक सफ़ेद पोश खानदान को राशन देने के बाद, जब घर लौटने के लिए चौक से गुज़रा, तो हर तरफ अंधेरे और घटाटोप का राज था। ऐसे अँधेरे में एक धीमी सी आवाज़ आई! " #भाई_मदद " मैं ये सोचकर नज़रअंदाज़ करना चाहा कि एक पेशेवर गदागर होगा, लेकिन दिल में ख़्याल आया कि अगर एक पेशेवर होता तो इस वक्त अंधेरे में यूँ खड़ा नहीं होता, गाड़ी रोक कर पास गया और देखा! अंधेरे में एक आदमी मुंह पर हाथ रखे खड़ा है। "जी भाई! कैसी मदद चाहिए? और अंधेरे में यूँ मुंह ढँके क्यों खड़े हो? अपना हाथ हटाइये।" मेरे कहने पर उसने अपने हाथ चेहरे से हटा लिए। अल्लाह की पनाह…! उस शख्स के गाल आंसुओं से भरे हुए थे और घुटी घुटी आवाज में रो रहा था, दोनों हाथों को अपने गालों से हटाकर माफी माँगने के अंदाज में हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और अपना सिर नीचे झुका लिया। मैं इस अंधेरे में भी उसके आंसूओं को थोड़ा टपकता देख सकता था, और अंदर ही अंदर कुछ टूटता हुआ महसूस होने लगा, आगे बढ़ा और दुबारा हमदर्दी से पूछा। "भाई, कुछ तो कहिए .....