एक ज़हनी बीमारी : Dilemma (दुविधा, तज़बज़ुब) से नजात की तदबीरें
अंग्रेज़ी का एक लफ़्ज़ है, Dilemma (डिलेमा), जिसका हिंदी में मतलब होता है, दुविधा। उर्दू में इसे तज़बज़ुब कहते हैं।
Dilemma क्या है?
*कभी-कभी हमारे सामने एक ऐसी मुश्किल सूरतेहाल होती है जहाँ हमें दो कठिन विकल्पों में से किसी एक को चुनना पड़ता है। कभी-कभी हालत यह होती है कि दोनों ही विकल्पों के नतीजे नकारात्मक होते हैं।*
दुविधा या तज़बज़ुब को अच्छी तरह से समझने के लिये हम इसके कुछ अन्य अर्थों पर विचार करते हैं।
1. धर्मसंकट : ऐसी स्थिति जहाँ धार्मिक या नैतिक रूप से निर्णय लेना कठिन हो।
2. असमंजस : स्पष्ट रूप से समझ न आना कि क्या करना है? यानी फ़ैसला लेने में हिचकिचाहट होना।
3. उलझन : किसी गुत्थी या समस्या में फंसना, जहाँ से बाहर निकलना मुश्किल हो।
4. अनिश्चय : किसी बात पर निश्चित न होना या संदेह होना।
Dilemma यह शब्द ग्रीक भाषा के *"di" (दो)* और *"lemma" (प्रस्तावना)* शब्दों से मिलकर बना है, जिसका मतलब होता है, "दोहरा प्रस्ताव।"
Dilemm एक ज़हनी बीमारी (Psychological Disease) है। आइये अब इसकी निशानियों को समझने की कोशिश करते हैं।
1. Dilemma में हमेशा कम से कम दो विकल्प होते हैं, जिनमें से किसी एक विकल्प को चुनने की मजबूरी होती है।
2. ये विकल्प अक्सर ऐसे होते हैं जो किसी न किसी तरह से नुक़सानदेह होते हैं और उन्हें हमारी तबीयत पसंद नहीं करती।
3. हमें कोई एक विकल्प चुनना ही होता है, लेकिन यह चुनाव करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि हर विकल्प का अपना नुकसान होता है।
4. चाहे जो भी रास्ता हम चुनें, उसके नतीजे नापसंदीदा ही होते हैं।
Dilemma वह "फँसाऊ" या "फंसाने वाली" स्थिति है जहाँ हमको किसी मुश्किल चुनाव का सामना करना पड़ता है, और कोई भी रास्ता आसान या फायदेमंद नहीं होता है।
Dilemma से उबरने की तदबीरें
हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के सामने अज़ीज़े-मिस्र की बीवी ने दो विकल्प रखे थे,
1. उसके साथ बदकारी करना।
2. ईमान बचाने के लिये बिना क़ुसूर के जेल में जाना।
दोनों ही विकल्प नापसंदीदा थे, मगर मजबूरी यह थी कि उन दोनों में से किसी एक को चुनना था। हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अपने ईमान व अख़लाक़ को बचाने के लिये जेल में डाले जाने के विकल्प को चुना।
कुछ अर्से बाद जब उनकी जेल से रिहाई हुई तो अल्लाह ने उन्हें मिस्र का वज़ीरे-खज़ाना (वित्तमंत्री) बनाकर वो मर्तबा अता कर दिया जिसके बारे में उन्हें गुमान भी नहीं था।
लिहाज़ा,
जब हमारे सामने Dilemma यानी दुविधा या तज़बज़ुब की स्थिति हो तो उससे उबरने के लिये हमें यह काम करने चाहिये,
1. अल्लाह के सामने अपनी तकलीफ़ ज़ाहिर करें।
2. नमाज़ों की पाबंदी करें और ज़्यादा से ज़्यादा तौबा व इस्तिग़फ़ार करें।
3. रोज़ाना क़ुरआन की तिलावत करें। अल्लाह फ़रमाता है कि दिलों को इत्मीनान अल्लाह के ज़िक्र से मिलता है।
4. अपनी दुविधा से जुड़ी बातों को लिखें फिर अपने किसी हमदर्द व खैरख़्वाह दोस्त से मशवरा करें।
5. जिन-जिन लोगों के साथ आपका झगड़ा है उन्हें माफ़ कर दें, ऐसा करने से दिल से नेगेटिव जज़्बात ख़त्म हो जाते हैं।
6. जो मुश्किल हालात पेश आए हैं उन पर सब्र करें क्योंकि बार-बार उनको लेकर परेशान होने से ज़हनी हालत ज़्यादा ख़राब होती है।
7. अगर अपने जाइज़ हक़ से कुछ कम मिले या बिल्कुल भी न मिले तब भी समझौता करके हालात को दुरुस्त कर लेना चाहिए। जब दिमाग़ में कोई दुविधा नहीं होगी तो नुक़सान की भरपाई के ज़्यादा बेहतर रास्ते नज़र आएंगे।
अल्लाह तआला तमाम लोगों को हर मुश्किल, परेशानी, मुसीबत और दुविधा से नजात दे, आमीन।
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